मध्य प्रदेश

ज्योतिरादित्य सिंधिया ने लिया बदला, अपने गढ़ में कांग्रेस को 1 वोट से दी मात

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ग्वालियर
ग्वालियर नगर निगम में सभापति पद पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की रणनीति और बाड़ेबंदी काम आ गई। बीजेपी ने सभापति के पद पर जीत हासिल कर ली है। बीजेपी के प्रत्याशी मनोज तोमर 34 वोट मिले हैं तो वहीं के कांग्रेस उम्मीदवार लक्ष्मी गुर्जर को 33 वोट मिले। हालांकि, कुछ पार्षदों की क्रॉस वोटिंग की बात भी सामने आ रही है। कांग्रेस के पास 25 पार्षद हैं, लेकिन 33 वोट मिले हैं। ग्वालियर नगर निगम में कुल 66 पार्षद हैं और एक मापौर के वोट को मिलाकर कुल 67 वोटर थे।  

बीजेपी भले ही ग्वालियर महापौर का पद हासिल नहीं कर पाई लेकिन सभापति के लिए कुशल रणनीति और बाड़ेबंदी का उन्हें फायदा मिल गया। महापौर का पद हारने के बाद बीजेपी ने लगातार सभापति पद को हासिल करने के लिए कुशल रणनीति और एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था। यही नहीं चंबल अंचल के दिग्गज नेता केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरेंद्र सिंह तोमर लगातार रणनीति बनाते रहे। यही कारण है कि सभापति के चुनाव से पहले बीजेपी ने अपने सभी 34 पार्षदों को ग्वालियर से बस में बैठाकर दिल्ली में एक होटल में ठहराया, जहां पर केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सभी पार्षदों के साथ मंथन कर सभापति की सीट हासिल करने के लिए रणनीति तैयार की और इसका नतीजा यह निकला कि आज बीजेपी ने सभापति सीट पर कब्जा कर लिया है।

बता दे, ग्वालियर में बीजेपी मेयर पद पर हारी तो सिंधिया और तोमर की साख पर सवाल खड़े होने लगे थे। यही वजह है कि इन दोनों दिग्गजों नेताओं के साथ-साथ पूरी बीजेपी ने सभापति की सीट हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत की। सबसे पहले 34 नवनिर्वाचित पार्षदों को दिल्ली बुलाया, जहां पहले केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सभी पार्षदों के साथ बैठकर मीटिंग की और उसके बाद केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने बंगले पर सभी पार्षदों को बुलाकर मंथन किया। क्योंकि केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरेंद्र सिंह तोमर की साख को लेकर सवाल खड़े हो रहे थे अगर बीजेपी सभापति का की सीट भी हार जाती तो कहीं ना कहीं ग्वालियर चंबल अंचल में बीजेपी के लिए बड़ी हार थी। यही कारण है कि सिंधिया और तोमर सभापति की सीट को हासिल करने के लिए लगातार पिछले एक सप्ताह से मंथन और रणनीति बनाते रहे और आखिरकार उन्होंने सभापति की सीट को जीतकर अपनी साख बचा ली।

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