भोरमदेव मंदिर की दीवारों से रिस रहा बारिश का पानी, एक ओर से धंस गई जमीन
छत्तीसगढ़ के कवर्धा स्थित भोरमदेव मंदिर के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है। मंदिर की दीवारों से बारिश का पानी रिस रहा है। यह रिसाव इतना ज्यादा है कि मंदिर के गर्भगृह तक पहुंच गया है और पुजारियों को थाली बाटी और बाल्टी से पानी निकालना पड़ता है। मंदिर की दीवारों पर बारिश का पानी आने एक ओर की नींव धंस गई है। इस समय लगातार हो रही बारिश के चलते पानी मंदिर के अंदर पहुंच रहा है। यह पानी पत्थरों के गैप से रिस रहा है। मंदिर की नींव कमजोर होने से एक ओर की दीवार भी धंस गई है। इसकी जानकारी जिला प्रशासन और पुरातत्व विभाग को दी गई है, फिर मंदिर की सुरक्षा को लेकर कोई कदम नहीं उठाया गया है।
मंदिर के पुजारियों का कहना है कि करीब सात साल से भी ज्यादा का समय हो गया है, लेकिन इसके रख रखाव को लेकर कोई कदम नहीं उठाया गया। साफ-सफाई नहीं होने से मंदिर में कई स्थानों पर काई तक जम जा रही है।
मंदिर परिसर में लगे पेड़ पहुंचा रहे नुकसान
बताया जा रहा है कि साल 2016-17 में ऑर्कियोलॉजिस्ट अरुण शर्मा ने मंदिर का निरीक्षण किया था। इसके बाद 17-18 बिंदुओं पर अपनी रिपोर्ट भी सरकार को भेजी थी। इसमें बताया गया था कि मंदिर परिसर में लगे पेड़ पानी को अवशोषित कर रहे हैं। उनका जड़ों से नीचे जाकर मंदिर की नींव को कमजोर कर रहा है। वहीं मंदिर में एसी और टाइल्स लगे हुए हैं, जो समस्या खड़ी कर रहे हैं। इसके बाद मंदिर से लगे हुए एक पेड़ को कटवाया भी गया था, पर उसके बाद कुछ काम आगे नहीं हुआ।
11वीं शताब्दी में राजा गोपाल देव ने बनवाया मंदिर
मंदिर करीब एक हजार साल पुराना है। भोरमदेव मंदिर की बनावट खजुराहो और ओडिशा के कोणार्क मंदिर जैसी है। कवर्धा से करीब 10 किमी दूर मैकल पर्वत समूह से घिरा यह मंदिर करीब एक हजार साल पुराना है। यहां मुख्य मंदिर की बाहरी दीवारों पर मिथुन मूर्तियां बनी हुई हैं, इसलिए इसे छत्तीसगढ़ का खजुराहो कहा जाता है। मंदिर को 11वीं शताब्दी में नागवंशी राजा गोपाल देव ने बनवाया था। ऐसा कहा जाता है कि गोड राजाओं के देवता भोरमदेव थे और वे भगवान शिव के उपासक थे। शिवजी का ही एक नाम भोरमदेव है। इसके कारण मंदिर का नाम भोरमदेव पड़ा।