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29 खेलों को एशियन गेम्स, कॉमनवेल्थ और ओलंपिक में मान्यता नहीं 336 छात्रों ने राष्ट्रीय स्तर पर जीते स्वर्ण पदक, नहीं मिला कोई रोजगार

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खेल के नाम पर खिलाड़ियों से खिलवाड़ हो रहा है। स्कूल और कॉलेज स्तर पर ऐसे दो दर्जन से अधिक खेलों का आयोजन हो रहा है, जिन्हें न तो एशियन गेम्स में मान्यता मिली है न ही कॉमनवेल्थ और ओलंपिक में। इन खेलों में खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर पदक भी जीतकर आ रहे हैं, लेकिन इससे उन्हें आगे नौकरी या रोजगार नहीं मिल रहा। मजबूरी में उन्हें खेल छोड़ना पड़ रहा है। हालांकि इन खेलों के लिए स्कूल शिक्षा विभाग में हर साल लाखों रुपए खर्च किए जा रहे हैं।

खेल प्रतिभाओं को मंच देने के लिए जिला, संभाग, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जा रही हैं। खेल प्रतिभाओं को निखारने और बच्चों को खुद के स्वास्थ्य के प्रति सचेत करने के उद्देश्य से स्कूलों और कॉलेजों में हर साल खेल की प्रतियोगिताएं हो रही हैं। इसके लिए स्कूलों में व्यायाम शिक्षक और खेल मैदान की अनिवार्यता भी रखी गई है। इसी के तहत कुछ प्रमुख खेलों, क्रिकेट, फुटबॉल, हॉकी, एथलेटिक्स, शतरंज समेत अन्य खेलों को भी शामिल किया गया है। इसमें 2015-16 के बाद से कुछ और खेलों को भी शामिल किया गया।

खिलाड़ियों में छाने लगी निराशा : शासन-प्रशासन भी नहीं इसके लिए गंभीर

यह हैं वो खेल जिनकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता नहीं, इस वजह से अनदेखी
जंप रोप, बाल बैडमिंटन, वुड बॉल लागोली, मिनी गोल्फ, ड्राप रो बॉल, डॉज बॉल, किक बॉक्सिंग, च्वाइकांडों, कार्फ बॉल, आर्म रेसलिंग, तांग इल मिल डू, सिलबंब, कुडो, थाई बॉक्सिंग, म्यू थाई, शूट बॉल, स्पीड बॉल, टेनिस बॉल क्रिकेट, गतका, फुटबॉली, टेबल सॉकर, कैरम, रस्सा कस्सी, सुपर सेवर क्रिकेट, रेड टेनिस बॉल, टेनिक्वाइट, साइकिल पोलो आदि।

336 बच्चों ने राष्ट्रीय स्तर पर किया प्रतिनिधित्व, 196 ने स्वर्ण पदक भी जीता
पिछले 6 साल में दुर्ग जोन से 3752 बच्चे इन खेलों में शामिल हुए। 2832 बच्चों ने राज्य स्तर पर जोन का प्रतिनिधित्व किया। इनमें से 336 बच्चों ने राष्ट्रीय स्तर पर छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व किया। इनमें से 196 बच्चों ने राष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण पदक, रजत पदक और कांस्य पदक हासिल किया है। इन बच्चों को इसके प्रमाण पत्र भी दिए गए हैं। अब उनके पास आगे स्कोप नहीं है।

राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर हो रही हर साल स्पर्धाएं, आगे बढ़ने का मौका नहीं
राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर इन खेलों की प्रतियोगिताएं हर साल हो रही हैं। इसके लिए अंतर शालेय, अंतर जिला, अंतर संभाग स्तरीय और राज्य स्तरीय प्रतियोगिताएं होती हैं। बाद में इन खेलों का ईस्ट जोन स्तर समेत राष्ट्रीय स्तर पर भी इवेंट्स होते हैं। इसके बाद आगे उनके पास कोई स्कोप नहीं रहता। इन खेलों में 8 से 10 साल देने के बाद ठगा सा महसूस कर रहे हैं।

जोन में हर साल करीब 70 लाख रुपए हो रहे खर्च
दुर्ग जोन में इन खेलों और इसके खिलाड़ियों के पीछे हर साल करीब 70 लाख रुपए खर्च किए जा रहे हैं। इसमें खेल के उपकरण, किट, ट्रैक शूट, जूते, मोजे, भोजन, रहना, खाना, प्रशिक्षण आदि में खर्च किया जाता है। इसके अलावा उनके कोच, मैनेजर समेत खिलाड़ियों डीए और टीए भी दिया जाता है।

प्रतिभाओं की कमी नहीं है कार्ययोजना की जरूरत
जिले में खेल प्रतिभाओें की कमी नहीं है। उन्हें निखारने का काम किया जा रहा है। इन खिलाड़ियों को स्कूल और कॉलेज से लेबल से भी आगे जाना होगा। राष्ट्रीय स्तर पर सीनियर लेबल की होने वाली प्रतियोगिताओं में भी पदक ला रहे हैं। इनके लिए एक सही कार्य योजना बनाने की जरूरत है, ताकि उन्हें खेल का सही फल मिल सके। इसके लिए शासन से मार्गदर्शन मांगा जाएगा।
-ए. एक्का, सहायक संचालक खेल एवं युवा कल्याण विभाग दुर्ग

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