राजनांदगांव : समर्थ स्वामी रामदास सांस्कृतिक समृद्धि के महाआदर्श – द्विवेदी
राजनांदगांव. भारतीय सनातन संस्कृति के महाप्रवर्तक छत्रपति शिवाजी महाराज के गुरू समर्थ स्वामी रामदास जी के परम पुण्य स्मरण परिप्रेक्ष्य में नगर के संस्कृति विचार प्रज्ञ प्राध्यापक कृष्ण कुमार द्विवेदी ने विशेष विचार चिन्तन में बताया कि समर्थ स्वामी रामदास एक साथ श्रेष्ठ गुरू, उत्कृष्ट रचनाकार, परम उपदेशक, गहन साधक, कुशल संगठक तथा सांस्कृतिक समृद्धि के महा आदर्श रहे। प्रारंभ से ही समर्थ स्वामी रामदास गहन तपस्वी जीवन चर्या के साथ, देशभर के कोने-कोने में स्थापित तीर्थो की दर्शन यात्रा करते हुए देश भर सात सौ मंदिर एवं मठों की स्थापना की तथा इनमें असंख्य युवाओं को सक्रियता से जोड़ कर उनके शारीरिक सौष्ठव में वृद्धि हेतु अखाड़ा, कुश्ती, मलखम्ब एवं योग – प्राणायाम अभ्यास की भी व्यवस्था करायी। महामाता जीजाबाई के परम आज्ञाकारी पुत्र शिवाजी को शिष्य बनाकर अद्भूत शिक्षा-प्रेरणा-मार्गदर्शन देकर अतीव गौरवशाली हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना करायी। अपने 74 वर्षीय उल्लेखनीय जीवन काल में समर्थ स्वामी रामदास ने श्रेष्ठ ग्रन्थों-रामायण, मनके श्लोक, चौदह शतक, गोसावी, मानसपूजा रामगीता, पंचकरण योग, अक्षर पद संग्रह, सप्तसमासी, रामकृष्ण स्तवन आदि सहित आरतियाँ, भजनों की श्रेयष्कर रचनाएँ की। संपूर्ण देश में श्रेष्ठ संत, महाज्ञानी एवं परमगुरू के रूप में सुविख्यात समर्थ गुरू रामदास के उपदेश, वाणी और सांस्कृतिक कार्य वर्तमान समय में हमारी युवा, किशोर, प्रबुद्ध पीढ़ी के लिये महा आदर्श है। आइये भारतीय सनातन संस्कृति के महा व्यक्तित्व समर्थ स्वामी रामदास के अतीव गौरवशाली कृतित्व को जाने समझें और मन-प्राण से स्वीकार कर और श्रेष्ठ पहल करें तथा देश-धरती को समृद्ध करें।