
भारत में कोरोना महामारी की दूसरी लहर बेकाबू हो चुकी है। पहली लहर की तुलना में दूसरी लहर बद से बदतर होती जा रही है। पूरे देश में संक्रमण ने अपना विकराल रूप धारण कर लिया है। हर रोज साढ़े तीन लाख से ज्यादा मरीज संक्रमित मिल रहे हैं, हालात को देखते हुए राज्यों में पूर्ण बंदी या आंशिक लॉकडाउन लागू है, लेकिन लॉकडाउन और नाइट कर्फ्यू समेत सख्त पाबंदी से देश की आर्थिक गतिविधियां कमजोर होती जा रही है। भारतीय अर्थव्यवस्था पर नज़र रखने वाली संस्था सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी ने दावा किया है कि लॉकडाउन की वजह से 72.50 लाख से अधिक लोग बेरोजगार हो गए हैं। इसकी वजह से फिर रोज़गार का संकट खड़ा हो गया है।
लॉकडाउन ने बढ़ाई परेशानी
सर्वे में पाया गया है कि महामारी की वजह से बड़ी संख्या में लोग पहले तो बेरोजगार हुए और फिर गरीबी रेखा के नीचे चले गए। भारतीय अर्थव्यवस्था की निगरानी के लिए केंद्र के उपभोक्ता पिरामिड घरेलू सर्वेक्षण (सीएमआईई-सीपीएचएस) के आंकड़े बताते हैं कि अप्रैल-मई 2020 में भारत में लगाए गए लॉकडाउन काफी सख्ती से लागू किए गए थे। दुनिया के किसी देशों में इतनी सख्ती से लॉकडाउन नहीं लागू किया गया था। इस दौरान 100 मिलियन श्रमिकों को रोजगार से हाथ धोना पड़ा था।
8 फीसदी पहुंची बेरोजगारी दर
पिछले साल और इस साल रोजगार दर में भारी गिरावट आई है। ठीक उसी तरह इस साल भी कोरोना की दूसरी लहर से बचने के लिए लॉकडाउन और नाइट कर्फ्यू से आर्थिक गतिविधियां बुरी तरह प्रभावित हुई है। दिसंबर 2020 तक पुरुषों के लिए रोजगार की पूर्व दर 94% थी, जबकि महिलाओं के लिए केवल 76% थी। समाचार एजेंसी पीटीआई ने एक रिपोर्ट के हवाले से जानकारी दी कि अप्रैल में देश की बेरोजगारी दर करीब 8% के स्तर पर पहुंच गई है, जो पिछले चार महीने के उच्चतम स्तर पर है। इससे पहले मार्च में इसकी दर 6.5 फीसदी थी।