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एमसीएक्स पर पीली धातु की कीमत में गिरावट, चांदी भी हुई सस्ती

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आज भारतीय बाजारों में सोने और चांदी की वायदा कीमत में गिरावट दर्ज की गई। एमसीएक्स पर सोना वायदा 0.6 फीसदी (27 रुपये) नीचे 47,292 रुपये प्रति 10 ग्राम पर पहुंच गया, जबकि चांदी वायदा 0.19 फीसदी (137 रुपये) गिरकर 70763 रुपये प्रति किलोग्राम रही। पिछले साल सोना 56,200 रुपये प्रति 10 ग्राम के उच्च स्तर पर पहुंचा था। भारत में सोने की कीमत में 10.75 फीसदी आयात शुल्क और तीन फीसदी जीएसटी लगता है।

वैश्विक बाजारों में इतनी रही कीमत
अंतरराष्ट्रीय बाजारों में हाजिर सोना 0.2 फीसदी गिरकर 1,789.02 डॉलर प्रति औंस पर कारोबार कर रहा था जबकि चांदी 0.5 फीसदी गिरकर 26.74 डॉलर प्रति औंस पर थी। एक मजबूत डॉलर इंडेक्स अन्य मुद्रा धारकों के लिए सोने को अधिक महंगा बनाता है। अन्य कीमती धातुओं में, पैलेडियम आज 0.2 फीसदी बढ़कर 2976.83 डॉलर पर रहा और प्लैटिनम 0.1 फीसदी नीचे 1228.94 डॉलर पर था।

सरकार ने सोने-चांदी पर घटाया था आयात शुल्क 
सरकार ने एक फरवरी को सोने और चांदी पर आयात शुल्क में कटौती की घोषणा की थी। इस कदम से घरेलू बाजार में इन मूल्यवान धातुओं की कीमतों को नीचे लाने में मदद मिलेगी तथा रत्न एवं आभूषण निर्यात को बढ़ावा मिलेगा। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2021-22 का बजट पेश करते हुए कहा कि, ‘वर्तमान में सोना और चांदी पर 12.5 फीसदी सीमा शुल्क लगाया जाता है। चूंकि, जुलाई 2019 में शुल्क 10 फीसदी से बढ़ा दिया गया था, इसलिए कीमती धातुओं के मूल्य में तेजी से वृद्धि हुई, इसे पिछले स्तर के करीब लाने के लिए हम सोना और चांदी पर सीमा शुल्क को युक्तिसंगत बना रहे हैं।’ सोना और चांदी पर सीमा शुल्क कम कर 7.5 फीसदी किया गया है। 

खुदरा आभूषण उद्योग में आ सकती है तेजी
खुदरा आभूषण उद्योग में इस साल 30-35 फीसदी तेजी की उम्मीद है। इंडिया रेटिंग्स ने एक रिपोर्ट में कहा, आर्थिक गतिविधियों के कोरोना पूर्व पर पहुंचने और सोने की कीमतों में नरमी से सुधार को गति मिलेगी। इससे पहले 2020-21 की तीसरी तिमाही में त्योहारी सीजन, शादी-विवाह के कारण मांग बढ़ने और कीमतों में 10 फीसदी गिरावट के कारण सोने की मांग में तेजी देखने को मिली थी। रिपोर्ट के मुताबिक, मांग में वृद्धि की वजह से 2021-22 में आभूषणों की मांग 30-35 फीसदी बढ़ने की उम्मीद है। हालांकि, अर्थव्यवस्था में ‘वी-आकार’ में सुधार को देखते हुए कोरोना पूर्व स्तर के मुकाबले समग्र मांग महज पांच से 10 फीसदी ही बढ़ सकती है।

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