
कोरोना ने शालीमार बाग निवासी राजू सचदेवा की 62 वर्षीय मां यशवंती का जीवन छीन लिया। उनका भाई और बेटी वेंटिलेटर पर हैं। उनकी मां का निधन घर में सोमवार की रात हुआ था। मंगलवार दोपहर 12 बजे तक इन्हें शव ले जाने के लिए कोई वाहन नहीं मिला। संक्रमित होने के कारण आइसोलेट राजू सचदेवा को न चाहते हुए भी श्मशान घाट तक जाना पड़ा।
मां के शव को श्मशान तक ले जाने के लिए इन्होंने पांच प्राइवेट एंबुलेंस की एजेंसी को कॉल किए। गूगल की मदद से सामाजिक संस्थाओं से संपर्क किया, लेकिन सहायता नहीं मिल सकी। सभी जगह से जवाब आया कि एंबुलेंस अभी व्यस्त है। आखिर इन्हें लोडिंग टैंपो में अपनी मां का शव ले जाना पड़ा। उन्हें 41 डिग्री सेल्सियस की झुलसाती गर्मी में शव को बिना फ्रीजर रखना पड़ा।
ठीक ऐसे ही हालात बुराड़ी स्थित शक्ति नगर एन्क्लेव निवासी पिंटू तिवारी के परिवार में दिखे। इन्हें 12 घंटे तक शव रखना पड़ा और उसके बाद जाकर अंतिम संस्कार हो पाया। इनके अलावा, बीते सोमवार को बुद्घ विहार फेज-2 निवासी जंगबहादुर त्रिपाठी की कोरोना संक्रमण से मौत हुई। इनके अंतिम संस्कार के लिए छह घंटे तक इंतजार करना पड़ा।
इस समय राजधानी के हालात ऐसे हैं कि मरीजों तो क्या, शवों को श्मशान घाट या कब्रिस्तान ले जाने के लिए भी लंबी वेटिंग है। सबसे बड़ी समस्या यह है कि बड़े अस्पतालों की मोर्चरी लगभग भरी हुई हैं। यहां उन्हीं शवों को फ्रीजर में रखा जा रहा है, जिनकी मौत अस्पताल में हुई है। होम आइसोलेशन में किसी मरीज की मौत हुई है तो उसके लिए फिलहाल कोई व्यवस्था नहीं है। राजधानी में 25 श्मशान घाट और कब्रिस्तान हैं। इनके अलावा, नगर निगम प्रशासन को आसपास के पार्कों का इस्तेमाल भी करना पड़ रहा है।
41 डिग्री तापमान में खराब होने लगता है शव
लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज के फॉरेंसिंक विभाग के वरिष्ठ डॉ. विवेक चौकसे के अनुसार, दिल्ली में इस वक्त तापमान काफी ज्यादा है। मंगलवार को ही अधिकतम तापमान 41 डिग्री सेल्सियस तक दर्ज किया गया है। ऐसे तापमान में शव को पीपीई किट के साथ बगैर फ्रीजर के रखना सुरक्षित नहीं है। शव काला पड़ने लगता है। इसके लिए फ्रीजर जरूरी है। हालांकि डॉ. चौकसे का कहना है कि दिल्ली में सीमित मोर्चरी हैं, जिनकी क्षमता 20 या उससे अधिक है। फिलहाल स्थिति कई गुना गंभीर है। सब्जी मंडी, एम्स, सफदरजंग, लोकनायक, लेडी हार्डिंग, डीडीयू और जीटीबी में सबसे बड़ी मोर्चरी हैं, लेकिन यहां के हालात सभी को पता हैं।
हमारे पास भी नहीं कोई विकल्प
कंबोज एंबुलेंस एजेंसी के राजाराम का कहना है कि उनके पास 12 एंबुलेंस हैं, लेकिन इस वक्त वेटिंग 28 की है। ऐसे में किसे सबसे पहले दें और किसे बाद में, यह समझ नहीं आ रहा। सोमवार को ही उन्होंने 35 शव एंबुलेंस के जरिये अलग-अलग जगह पर अंतिम संस्कार के लिए पहुंचाए हैं। वहीं यादव एजेंसी के महेश कुमार ने भी कहा कि वेटिंग इतनी ज्यादा है कि हम जल्दी व्यवस्था नहीं कर पा रहे हैं। अस्पतालों में बिस्तर न होने की वजह से एक-दो घंटे में लौटने वाली एंबुलेंस को पूरा दिन लग रहा है। उसे मरीज लेकर एक से दूसरे अस्पताल घूमना पड़ रहा है।
सरकार के नियमों का भी असर नहीं
पिछले वर्ष केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोविड शवों को लेकर दिशा-निर्देश जारी किए थे। इसके अनुसार, कोरोना से किसी की मौत हुई है तो शव 100 माइक्रोन मोटे प्लास्टिक बैग में पैक किया जाएगा। इस दौरान एक परिजन को अंतिम दर्शन कराए जाएंगे। उसे पूरा सुरक्षा कवच दिया जाएगा। शव मोर्चरी से एंबुलेंस के जरिए श्मशान घाट पहुंचेगा। पीपीई किट पहने एंबुलेंस कर्मचारी शव को दाह संस्कार के लिए लेकर जाएंगे। फिलहाल दिल्ली में ऐसे हालात हैं कि अस्पताल तो अलग होम आइसोलेशन या फिर दूसरी किसी वजह से मौत होने के बाद परिजनों को अंतिम संस्कार के लिए बेहद परेशान होना पड़ रहा है।
कंट्रोल रूम में रोज मिल रहीं 900 कॉल
चालक अभय ने कहा कि एंबुलेंस के लिए कंट्रोल रूम में रोज औसतन 900 कॉल आ रही हैं। मांग अधिक होने की वजह से उन्हें इंतजार करना पड़ रहा है। मरीजों को घंटों इंतजार के बाद भी एंबुलेंस मिलने में दिक्कत हो रही है। देरी से बचने के लिए लोग निजी एंबुलेंस की मदद लेते हैं तो सुविधाएं होने की वजह से अधिक किराया वसूला जा रहा है। एंबुुलेंस चालक राज कर्दम ने बताया कि अस्पतालों तक मरीजों को पहुंचाना मुश्किल नहीं है, लेकिन रास्ते में उनकी हालत को देखते हुए चिंता सताती रहती है कि कोई बड़ी समस्या न आ जाए।
कम खर्च में कैब भी मरीजों को पहुंचा रही हैं अस्पताल
सर्वोदय ड्राइवर्स एसोसिएशन ऑफ दिल्ली के प्रधान कमलजीत गिल ने बताया कि सीएनजी कैब के जरिये लोगों को अस्पतालों में पहुंचाया जा रहा है। कोरोना के कारण गंभीर स्थिति से निपटने के लिए फिलहाल 50 एंबुलेंस सेवाएं दे रही हैं। यात्रियों से किराया भी काफी कम वसूला जा रहा है।
सैनिटाइजेशन के लिए वक्त निकालना मुश्किल
कैट्स एंबुलेंस की संख्या काफी कम है। निजी एंबुलेंस के लिए मरीजों को काफी अधिक खर्च करना पड़ रहा है। कंट्रोल रूम में कॉल ज्यादा होने के बावजूद तत्काल सेवा देने का प्रयास किया जाता है। एंबुलेंस पूरे दिन व्यस्त होने की वजह से दूसरे मरीज को ले जाने के पहले सैनिटाइजेशन या साफ-सफाई का भी मौका नहीं मिल पाता है।