राजनांदगांव : दिग्विजय महाविद्यालय के प्राणीशास्त्र विभाग के विद्यार्थियों ने किया CIFA, नंदन कानन एवं चिल्का झील का शैक्षिक भ्रमण

राजनांदगांव | संस्था के प्राचार्य डॉ सुचित्रा गुप्ता के कुशल मार्गदर्शन एवं प्राणी शास्त्र विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ किरण लता दामले के कुशल नेतृत्व में प्राणीशास्त्र विभाग के स्नातकोत्तर पूर्व एवं अंतिम वर्ष के विद्यार्थियों ने अंतर राज्य शैक्षिक भ्रमण हेतु उड़ीसा राज्य के पुरी एवं भुवनेश्वर पहुंचे। जहां उन्होंने संस्था के प्राध्यापक चिरंजीव पाण्डेय एवं अतिथि व्याख्याता कु. जागृति चंद्राकर के नेतृत्व में स्नातकोत्तर पूर्व एवं अंतिम वर्ष के विद्यार्थियों ने यात्रा के प्रथम दिवस विद्यार्थियों द्वारा दिनांक 01-04-25 को विद्यार्थी सर्वप्रथम भुवनेश्वर स्थित भुवनेश्वर स्थित Central Institute of Freshwater Aquaculture (CIFA) का शैक्षिक भ्रमण किया गया। इस शैक्षणिक यात्रा का उद्देश्य विद्यार्थियों को जलीय पारिस्थितिकी, मछली पालन तकनीक एवं जल जैविकी से जुड़ी नवीनतम शोध गतिविधियों की प्रत्यक्ष जानकारी प्रदान करना था। प्रशिक्षण यात्रा का नेतृत्व प्राणीशास्त्र विभाग के सहायक प्राध्यापक श्री चिरंजीव पाण्डेय द्वारा किया गया। भ्रमण के दौरान विद्यार्थियों को संस्थान के विभिन्न अनुभागों जैसे मछली पालन तकनीकी इकाई, प्रजनन केन्द्र, जल गुणवत्ता परीक्षण प्रयोगशाला, मछली आहार निर्माण इकाई तथा अनुसंधान प्रयोगशालाओं का अवलोकन कराया गया। CIFA के वैज्ञानिकों ने विद्यार्थियों के साथ विस्तारपूर्वक संवाद किया एवं उन्हें भारत में मछली पालन के वर्तमान परिदृश्य, वैज्ञानिक मत्स्य पालन की विधियाँ, पर्यावरणीय प्रबंधन, तथा एक्वाकल्चर में हो रहे नवाचारों से अवगत कराया। विशेष रूप से, इंडियन मेजर कार्प्स (कटला, रोहु, मृगल) के प्रजनन तकनीकों एवं इनकी संतुलित वृद्धि हेतु पोषण व जल गुणवत्ता की भूमिका को विद्यार्थियों ने बारीकी से जाना। विद्यार्थियों ने उत्साहपूर्वक प्रश्न पूछे, जिनका वैज्ञानिकों ने सरल भाषा में उत्तर देकर उनकी जिज्ञासाओं का समाधान किया। इस शैक्षिक भ्रमण से विद्यार्थियों को शोध क्षेत्र में करियर विकल्पों की नई दिशा मिली एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण को व्यवहारिक धरातल पर समझने का सुअवसर प्राप्त हुआ। तत्पश्चात नंदन कानन जैविक उद्यान (Nandankanan Zoological Park) का शैक्षिक भ्रमण किया। इस भ्रमण का उद्देश्य विद्यार्थियों को वन्यजीवों के संरक्षण, व्यवहार, जैव विविधता तथा प्राणीशाला प्रबंधन से संबंधित व्यावहारिक जानकारी प्रदान करना था। विद्यार्थियों को नंदन कानन के विविध अनुभागों जैसे — सफेद बाघ संर्वधन केंद्र, रीपटाइल हाउस, प्राइमेट जोन, नाइट हाउस, तथा एविएरी सेक्शन (पक्षी प्रभाग) का विस्तृत अवलोकन कराया गया। नंदन कानन जू अपने जैव विविधता संरक्षण, प्रजाति संवर्धन तथा आधुनिक प्राणीशाला प्रबंधन के लिए देशभर में प्रसिद्ध है। यहां पर विद्यार्थियों ने दुर्लभ वन्य प्रजातियों जैसे सफेद बाघ, भारतीय सिंह, नीलगाय, लाल पांडा, काले हिरण, मगरमच्छ, अजगर, विभिन्न प्रकार के कछुए, एवं देशी-विदेशी पक्षियों के व्यवहार और रहन-सहन को प्रत्यक्ष रूप से देखा और जाना। प्रशासनिक अधिकारियों और जैविक उद्यान के विशेषज्ञों ने विद्यार्थियों से संवाद करते हुए उन्हें बताया कि नंदन कानन भारत का पहला ऐसा जू है जहाँ कैप्टिव ब्रीडिंग से सफेद बाघों का सफल संवर्धन हुआ है। उन्होंने यह भी बताया कि उद्यान में “रीहैबिलिटेशन” (पुनर्वास) केंद्र भी कार्यरत है, जहाँ घायल या बेसहारा वन्यजीवों का संरक्षण एवं पुनर्वास किया जाता है। विद्यार्थियों ने भ्रमण के दौरान विविध शैक्षणिक गतिविधियों में भाग लिया और वन्यजीवों के जैविक, पारिस्थितिक एवं संरक्षण संबंधी पहलुओं पर उपयोगी जानकारी प्राप्त की। इस भ्रमण से विद्यार्थियों को सैद्धांतिक ज्ञान के साथ-साथ व्यावहारिक अनुभव भी प्राप्त हुआ, जिससे उनके ज्ञान क्षितिज का विस्तार हुआ। साथ ही ऐतिहासिक व बौद्ध संस्कृति से समृद्ध स्थल धौली गिरी (Dhauli Giri) का शैक्षिक भ्रमण किया। इस शैक्षिक भ्रमण के दौरान विद्यार्थियों ने धौली गिरी की ऐतिहासिक महत्ता, अशोक स्तंभ, बौद्ध स्तूप, शांति स्तूप, तथा वहां पर अंकित ब्राह्मी लिपि में खुदे शिलालेखों का अवलोकन किया। धौली गिरी वही स्थल है जहाँ सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध के उपरांत हिंसा का त्याग कर बौद्ध धर्म अपनाया था और ‘धम्म’ का प्रचार किया। यहां स्थित विशाल शांति स्तूप (Peace Pagoda) जापानी बौद्ध संस्था ‘निप्पोन्जन म्योहो जी’ द्वारा निर्मित किया गया है, जो विश्व शांति, करुणा और अहिंसा के प्रतीक के रूप में स्थापित है। विद्यार्थियों ने इस भ्रमण के दौरान प्रकृति और इतिहास के समन्वय को प्रत्यक्ष रूप से देखा और समझा। शांत वातावरण, कलात्मक स्तूपों की वास्तुकला, प्राकृतिक ढलान पर बनी मूर्तियों, एवं स्थापत्य कला ने सभी को आकर्षित किया। भ्रमण ने विद्यार्थियों को बौद्ध दर्शन, धम्मचक्र प्रवर्तन, और सम्राट अशोक के विचारों से भी परिचित कराया। इस भ्रमण ने विद्यार्थियों को यह सिखाया कि कैसे ऐतिहासिक स्थलों का संरक्षण और संवर्धन हमारी सांस्कृतिक विरासत की रक्षा में सहायक होता है। साथ ही उन्होंने सीखा कि प्राकृतिक परिवेश और सांस्कृतिक स्थलों का अध्ययन जैविक व मानवीय दृष्टिकोणों को संतुलित रूप से विकसित करने में सहायक होता है।
उड़ीसा राज्य के पुरी ज़िले में स्थित चिल्का झील (Chilika Lake) का शैक्षिक भ्रमण किया। यह भ्रमण विद्यार्थियों को खारे जल की जैव विविधता, प्रवासी पक्षियों के व्यवहार, एवं पारिस्थितिकी तंत्र के व्यावहारिक ज्ञान से अवगत कराने हेतु आयोजित किया गया था। भ्रमण के दौरान विद्यार्थियों ने चिल्का झील के विभिन्न पारिस्थितिक क्षेत्रों का अवलोकन किया, जिसमें मछलियों की विविध प्रजातियाँ, प्रवासी पक्षी, कछुए, डॉल्फ़िन एवं मैन्ग्रोव वनस्पतियाँ सम्मिलित थीं। चिल्का झील, एशिया की सबसे बड़ी खारे जल की झील है, जो अपने जैविक विविधता और प्रवासी पक्षियों के लिए विश्व प्रसिद्ध है। यह झील लगभग 1100 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैली हुई है और इसे रामसर साइट के रूप में अंतरराष्ट्रीय महत्व प्राप्त है। चिल्का झील मूल रूप से अपनी जैव विविधता के लिए पप्रसिद्ध है, यहां विद्यार्थियों ने इसके कई छोटे बड़े द्वीप जैसे की नलबन द्वीप जिसे पक्षी अभ्यारण घोषित किया गया है, जहां साइबेरिया मंगोलिया रूस यूरोप और अन्य ठंडे देशों से विभिन्न पक्षी भोजन एवं प्रजनन के लिए आते हैं। यहां प्रवासी पक्षी जैसे फ्लेमिंगो, पेलिकन , स्टिल्ट, प्लोवर, डक,ग्रे हेरोन, सफेद बगुला और अन्य पक्षियों का अवलोकन किया। साथ ही उन्होंने विद्यार्थियों ने छिलका के डॉल्फिन प्वाइंट पर जाकर झील की एक दुर्लभ प्रजाति इरावदी डॉल्फिन का भी अवलोकन किया। जो मीठे और खारे पानी के मिश्रण वाले जल क्षेत्र में पाए जाने वाली विश्व भर में दुर्लभ प्रजाति की डॉल्फिन है। चिल्का झील इस दुर्लभ डॉल्फिन का प्रमुख आश्रय स्थल है यह डॉल्फिन आकार में छोटी, गोल सिर वाली और बिना चोंच वाली होती है। जीत झील के सतपाड़ा क्षेत्र में डॉल्फिन मुख्य रूप से देखी गई।साथ ही विद्यार्थियों ने इस स्थानीय मछुआरों से उनके दैनिक जीवन मछली पकड़ने के तरीके के बारे में भी जाना। तत्पश्चात विद्यार्थियों ने चिल्का झील में केकड़ा पालन कर्क कलर का भी अवलोकन किया जो वहां की महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधि है चिल्का झील के आसपास के मछुआरे पारंपरिक एवं वैज्ञानिक तरीके से केके का पालन करते हैं, जहां केकड़े की मुख्य प्रजाति के रूप में मड क्रैब सैला सेरेटा की खेती की जाती है। स्थानीय मछुआरे ने विद्यार्थियों के केकड़े के बीच के संग्रहण पालन क्षेत्र देखभाल भोजन एवं परिपक्वता और कटाई के बारे में विस्तार से समझाया। साथी केकड़े के पेन कल्चर के बारे में भी बताया। विद्यार्थियों ने चिल्का झील में इको टूरिज्म के बारे में भी जाना जहां मंगल जोड़ी गांव स्थानीय पक्षी प्रेमियों के लिए स्वर्ग के समान है यहां स्थानीय मछुआरे इको टूरिज्म गाइड के रूप में कार्य करते हैं और आने वाले पर्यटकों को क्षेत्र की जैव विविधता के बारे में विस्तार से जानकारी प्रदान करते हैं। वोटिंग के दौरान विद्यार्थियों ने चिल्का झील के मंदिर वनस्पति के बारे में भी जानकारी प्राप्त की, यहां मुख्य रूप से प्रकृति प्रकार की मैंग्रोव वनस्पति मिलती है एविसेनिया मरीना, राईजोफोरा म्यूक्रोनाटा का अवलोकन भी किया जो मिट्टी के काटो मत के साथ मत्स्य पालन को बढ़ावा देते हैं और बहुत सारे झिंगी एवं केकड़ों का घर है। चिल्का डेवलपमेंट अथॉरिटी वर्तमान में चिल्का के पारिस्थितिक तंत्र एवं जैव विविधता को संरक्षण के लिए बहुत बेहतर कार्य कर रहा है| भ्रमण के दौरान विद्यार्थियों ने झील में देखे गए पक्षियों में फ्लेमिंगो, ग्रे हेरन, स्पूनबिल, ब्राह्मणी बतख, एवं सीगल्स आदि को नजदीक से देखा और उनके व्यवहार का निरीक्षण किया। विद्यार्थियों को स्थानीय मछुआरों और जैव विविधता संरक्षण से जुड़े विशेषज्ञों से संवाद करने का अवसर भी प्राप्त हुआ। उन्होंने बताया कि चिल्का झील न केवल जैव विविधता का खजाना है, बल्कि स्थानीय समुदायों की आजीविका का भी प्रमुख स्रोत है। विद्यार्थियों को बताया गया कि किस प्रकार झील का संरक्षण एवं सतत उपयोग किया जा सकता है। विद्यार्थियों ने मोटर बोट के माध्यम से झील के भीतर जाकर कालीजय द्वीप एवं डॉल्फ़िन पॉइंट का भ्रमण किया, जहाँ उन्हें दुर्लभ इरावडी डॉल्फ़िन के दर्शन भी हुए। यह अनुभव उनके लिए रोमांचकारी एवं ज्ञानवर्धक रहा।
शैक्षणिक भ्रमण के सफल आयोजन हेतु महाविद्यालय के प्राचार्य डॉसुचित्रा गुप्ता ने विभाग को शुभकामनाएँ देते हुए कहा कि इस प्रकार के शैक्षणिक भ्रमण विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास हेतु अत्यंत आवश्यक हैं। उन्होंने बताया कि भविष्य में भी विद्यार्थियों को राष्ट्रीय स्तर के प्रतिष्ठित शोध संस्थानों से जोड़ने का प्रयास महाविद्यालय द्वारा निरंतर किया जाएगा। इस भ्रमण से लौटकर विद्यार्थियों ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि CIFA में मिला ज्ञान, प्रयोगात्मक अवलोकन एवं विशेषज्ञों से सीधा संवाद उनके शैक्षणिक जीवन की एक अविस्मरणीय उपलब्धि है। यह भ्रमण उनके ज्ञान, कौशल एवं आत्मविश्वास में अभूतपूर्व वृद्धि करने वाला सिद्ध हुआ।