छत्तीसगढ़ी लोक सांस्कृतिक क्रांति के पुरोधा – दाऊ रामचन्द देशमुख
7 नवम्बर को चंदैनी गोंंदा के स्थापना दिवस पर विशेष
राजनांदगांव। छत्तीसगढ़ी लोक रंग शैली नाचा के पुरोधा दाऊ दुलार सिंह मंदराजी का नाम कभी भुलाया जा सकता उसी तरह छत्तीसगढ़ी लोक सांस्कृतिक क्रंाति का बिगुल फूंकने वाले दाऊ रामचंद्र देशमुख का नाम सदैव चिरस्मरणीय बना रहेगा। दाऊ जी तत्कालीन मध्यप्रदेश में ”अमीर धरती के गरीब लोग ÓÓछत्तीसगढिय़ों का दमन, शोषण व राज्य की वन सम्पदा खनिज सम्पदा का लाभ यहां के निवासियों को नही मिलने से प्राय: विचलित रहते थे। यहां की गरीबी उनसे देखी नही जाती थी। वे दबे पिछड़े दलित शोषित पीडि़त छत्तीसगढिय़ों को बगैर किसी खाद पानी व देखरेख के जहां तहां उग आने वाले चन्दैनी गोंदा फूल के रूप में देखते थे। यही चन्दैैनी गोंदा ही पूजा के फूल बन कर दाऊ रामचन्द्र देशमुख की युगांतकारी कृति चंदैनी गोंदा बनी जिसके गीत संगीत नृत्य ने लाखों लोगों का मन मोह लिया वही इसकी मंचीय प्रस्तुति में स्वंय दाऊ जी द्वारा अभिनित कर दिखाए जाने वाले प्रतीक व बिम्ब प्रबुद्ध वर्गो को सोचने के लिए विवश कर देता था। खासकर उनका खटिया में बैैठकर ढेरा आटने वाला दृश्य काफी प्रभावकारी होता था जिसके बारे में वे कहा करते थे छत्तीसगढिय़ों का समुचित विकास नही होने के कारण यहां के प्रत्येक व्यक्ति के मन में आक्रोश है । वे मन ही मन गुंगवा रहे है और शोषण चक्र का जो ढेरा है वह अनवरत घुमते ही जा रहा है इस पर लगाम लगनी चाहिए। छत्तीसगढिय़ों का समुचित विकास हो यहां के खििनज बन सम्पदा का लाभ यहां के व्यक्तियों को मिलना चाहिए। दाऊजी ने यहां दलित पीडि़त लोगों की आवाज चन्दैनी गोंदा के माध्यम से उठाई। उन्होंने गीतकार लक्ष्मण मस्तुरिहा के माध्यम से ”गिरे परे हपटे मन.. मोर संग चलव रे.. मोर संग चलव रे .. मोर संंग चलव जी.. का आव्हान किया। यही नही दोगर प्रांत में कमाने – खाने गये अपने धनी की याद में ”धनी बिना लागे.. जग सुन्ना रे.. नई भावेे मोला, सोना – चांदी, महल अटारीÓÓ जैसे विरह गीत हो अथवा बंगला बारी के सोन चिरइया आ जावे तरिया पार – बंगला बारी के हो जैसे छत्तीसगढ़ के सोन चिरइया बनने की कल्पना वाली गीत हो या फिर ”मोर खेती – खार रूमझुमÓÓ व मनडोले रे.. मांग फागुनवा.. जैसे उल्लासिक व मतंग बना देने वाला लोकगीत लोगों को झूमने के लिये विवश कर देता था।
चंदैनी के छईहा म रे..
सन १९७० के शुरूवाती दौर में नाचा के पुरोधा दाऊ मंदराजी का साथ छोड़कर सुप्रसिद्ध रंगकर्मी हबीब तनवीर का हाथ थाम लिए। इन कलाकारों ने लांग प्ले के माध्यम से छत्तीसगढ़ी गीतों की अमिट सुगंधि – तोला जोगी जानेव रे भाई, सास गारी देवे, गुरू के बाना, चलो बहिनी जाबोन चंदैनी के छईहा म रे.. बिखेरी तो इसकी प्रसिद्धी न्यू शियेटर दिल्ली से लेकर छत्तीसगढ़ के आसमान पर छा गया और हर जिलों में यह गीत गुंजायमान होने लगा। इन्ही दिनों सन १९७१ में चन्दैनी गोंदा के निर्माण में जुटे दाऊ राम चंद देशमुख इन लोकप्रिय गीतों के प्रभाव से अछूते न रहे और वे संगीतकार खुमानलाल साव केदार यादव गिरिजा सिन्हा, संतोष टांक, अनुराग ठाकुर, कविता हिरकने आदि को लेकर ऐसे ऐसे मधुरतम छत्तीसगढ़ी गीतों की रचना करवाई व आकाश वाणी के माध्यम से हुए रिकार्डिंग में जब इसका प्रचार-प्रसार हुआ तो ये सभी गीते सब के दिलों में छा गये। इसके गीत संगीत लोगों के सिरचढ़ कर बोलने लगे यहां तक कि इन गीतों से सजे रायपुर आकाशवाणी के सुर सिंगार के गीत बिनाका गीत माला की तरह सुने जाने लगे। चन्दैनी गोंदा के राग-रागनियो में निबद्ध कई गीत व लोक कला और लोक संस्कृति से अनुप्राणित गीत – संगीत से समूचा छत्तीसगढ़ अंचल महक उठता था ।
दया – मया ले जा रे, मोर गांव ले.. – चंदैनी गोंदा के गीत संगीत के दिवाने हुुआ करते थे । इसकी के साथ चंदैनी गोंदा की मंचीय प्रस्तुति भी अपनी कला सौन्दर्य की मधुर अभिव्यक्ति के साथ चार-चांद लगा देती थी जिसके आगोश में बंधकर हजारों की संख्या में लोग रात-रात भर जाग कर इसका लुफ्त उठाते थे और अपने मन में कांटा खुटी के हटइया बने – बने के नठइया – दया मया ले जा रे मोर गांव ले जैसे मधुरतम गीत का संदेश लेकर जाते थे । दाऊ जी की देख रेख व कड़े अनुशासन के बीच चन्दैनी गोंदा का मंचन सर्वकालिक सार्वजनिन व सर्वव्यापी स्तर में होता था । दाऊ जी राजनांदगांव से लगे ग्राम पिनकापार में रहा करते थे। वे यहां सन १९३० में लीला मंडली, सन १९५० में छत्तीसगढ़ी देहाती कला विकास मण्डल की स्थापना की जिसके माध्यम से उन्होंने सरग अऊ नरक, जनम अऊ मरण, काली माटी जैसे प्रस्तुतियां दी। इसके बाद उनकी सर्व श्रेष्ठ युंगातरकारी प्रस्तुति चन्दैनी गोंदा का पूरे छत्तीसगढ़ सहित अन्य प्रांतों में भी भव्य मंचन हुुआ। तत्पश्चात संस्कारधानी के मूर्धन्य साहित्य विभूति पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी की कृति ”छत्तीसगढ़ की आत्माÓÓ पर सन १९८३ में कारी नाटय का सृजन किया। इसकी प्रथम प्रस्तुति पृथक छत्तीसगढ़ राज्य आंदोलन के सृजेता व स्वप्न दृष्ट्रा डॉ. खूबचंद बघेल (जो उनके ससुर) थे के गृह ग्राम सिलियारी में २२ फरवरी १९८४ को हुआ। नारी चरित्र की उज्जवल व मर्म स्पर्शी गाथा ”कारीÓÓ नि:संदेह एक अनुपम व मनोमुग्धकारी प्रस्तुती थी। साहित्य से गहरा लगाव – कृषि विशेषज्ञ कानून विद, वैद्य विशारद, और लोक कलाओं के मर्मज्ञ दाऊ रामचंद देशमुख का साहित्य से जितना गहरा लगाव था उतनी ही उन्हें राजनीति से अरूचित थी। वे तत्कालीन सूचना व प्रसारण मंत्री विद्याचरण शुक्ल को अपने मंच में चढऩे नही दिया व सामने दर्शक दीर्घा में बैैठकर देखने विवश कर दिया तथा कहा कि चंदैनी गोंदा छ.ग. के भोले भाले छ.ग. की निर्धनता अशिक्षा जहालत व साहस हीनता अब तक मिटी क्यों नही है। चंदैनी गोंदा इस सबका दिग्दर्शन कराता है। छत्तीसगढ़ का स्वाभिमान व छत्तीसगढ़ की अस्मिता के प्रति सदैव सजग व चितिंत रहने वाले दाऊ रामचंद देशमुख जी का निधन १३ जनवरी १९९८ बघेरा दुर्ग में हुआ। ऐसे महान स्वप्न दृष्टा दाऊ जी ने सन १९७१ में छत्तीसगढ़ी में लोक सांस्कृतिक क्रांति का विगुल फूंकने अपनी युगांतकारी प्रस्तुति चंंदैनी गोंदा की स्थापना की । वास्तव में चंदैनी गोंदा माटीपुत्र किसान की कभी न खत्म होने वाली पीड़ा व शोषण की करूणा कथा है जो छत्तीसगढ़ के जीवन में अकाल दुकाल था अभाव एक दम स्थायी भाव बन कर बैठ गया है इसी का ही साक्षात्कार चंदैनी गोंदा में कराया गया है। आज भी वह कार्य चंदैनी गोंदा के कलाकारों द्वारा निरन्तर जारी है ।
आज ७ नवम्बर शनिवार को छत्तीसगढ़ के नामी कलाकारों व चन्दैनी गोंदा से जुड़े कला एवं साहित्य धर्मियों द्वारा दुर्ग के गोंडवाना भवन में तथा इस वर्ष राज्य शासन से मंदराजी सम्मान से सम्मानित चंदैनी गोंदा के पूर्व वरिष्ठ कलाकार शिव कुमार दीपक, पूर्व उदभोषक सुरेश देशमुख, गीतकार मुकुन्द कौशल, सुप्रसिद्ध ढोलक वादक मदन शर्मा, पूर्व कलाकार आत्मा राम कोशा अमात्य, लता खापार्डे गोविंद शाह, रामशरण वैष्णव, मनहरण साहू आदि सहित अन्य कलाकारों की उपस्थिति में शिवाकांत तिवारी अध्यक्ष – साहित्य सांस्कृतिक प्रकोष्ठ – लोक कला सेवा संस्थान दुर्ग द्वारा लोक कला भवन सिविल लाईन कसारे डीह में ८ नवम्बर रविवार को दाऊ रामचंद देशमुख को श्रद्धांजलि स्वरूप ”पुरखा के सुरताÓÓ नामक कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। जिसमें जिले के विधायक, महापौर व अन्य जनप्रतिनिधियों सहित बड़ी संख्या में लोक कलाकार जुट रहे है।