मध्य प्रदेश

समृद्ध मप्र के लिए प्राकृतिक खेती का हो रहा विस्तार

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भोपाल
मध्यप्रदेश में भारत और जर्मनी के सहयोग से हरित सतत विकास भागीदारी कार्यक्रम में चल रही 16 परियोजनाओं में संवहनीय खेती अपनाकर पंचायतें कृषि के क्षेत्र में तेजी से आत्म-निर्भर बन रहीं हैं। आत्मनिर्भर पंचायत-समृद्ध मध्यप्रदेश पर आयोजित तीन दिवसीय कार्यशाला में जनजातीय जिलों की पंचायतों से आई कृषक महिलाओं ने उत्साह से अपनी उपलब्धियां बताई। इसका आयोजन पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग और जर्मन संस्था जीआईजेड द्वारा किया गया।

पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री श्री प्रहलाद पटेल के उत्साहवर्धन पर जनजातीय महिलाओं ने विस्तार से आत्मनिर्भर खेती पर चर्चा की। मंडला जिले के ग्राम पंचायत कांसखेड़ा की कृषक दीदी रेखा ने गाय, गोबर और गोमूत्र आधारित खेती की जानकारी दी। जलवायु परिवर्तन के खतरो का मध्यप्रदेश कैसे सामना कर समृद्ध हो सकता है इसकी रणनीति पर निरंतर विचार चल रहा है। विभिन्न पंचायतों में चल रहे आदर्श कार्यों की स्थानीय ग्रामीण जनजातीय महिलाओं ने विस्तार से जानकारी दी।

मंडला के निवास विकासखंड में सिंहपुर गांव की रहने वाली लक्ष्मी बैरागी ने बताया कि कैसे सिंहपुर गांव रासायनिक खेती से मुक्त गांव बन गया है। यहां पूरी तरह से प्राकृतिक खेती हो रही है। उन्होंने बताया कि यहां 450 एकड़ जमीन है जो 120 किसानो की है और 80 एकड़ आवासीय भूमि है। यहां 12 एकड़ में प्लांटेशन लगा है और 45 एकड़ में चारा उगाया जा रहा है। अपना अनुभव साझा करते हुए वे कहती है कि जल, जंगल जमीन, पशु और चारागाह के बिना प्राकृतिक खेती नहीं की जा सकती। वे बताती है कि प्राकृतिक खेती करने से गोमूत्र आधारित कीटनाशक और अन्य खाद की कमी पड़ जाती है। इसलिए गोमूत्र से जैविक खाद और कीटनाशक बनाने का काम पशु शेड से जुड़कर किया जा रहा है।

मंडला जिले की ही बिछिया विकासखंड के कन्हरी बजन ग्राम पंचायत के भुलूज गाँव की रहने वाली किसान दीदी ने बताया कि कैसे तालाबों में मछली पालन किया जा रहा है और कैसे मुर्गी पालन और पशु शेड का उपयोग जैविक खाद बनाने में हो रहा है। इस गांव में 65 किसान दीदियों ने अपने घरों में किचन गार्डन विकसित किया है और सब्जियां उगा रही हैं। आंगनबाड़ियों को भी सब्जियां दे रही हैं। पूरा गांव प्राकृतिक खेती कर रहा है। यहाँ के किसान खेती में लगने वाले महंगे रसायनों से मुक्त होकर अब खेती में आत्मनिर्भर बन रहे हैं। मोहगांव विकासखंड की ग्राम पंचायत कावरडोंगरी की किसान दीदी बताती हैं कि पोषण वाटिका के पहले सब्जियों के लिए बाजार जाते थे और रसायन वाली सब्जियां खाते थे। अब शुद्ध सब्जियां मिल रही हैं।

जिला पंचायत सागर के अध्यक्ष श्री हीरा सिंह राजपूत, शाजापुर जिला पंचायत की अध्यक्ष नेहा यादव, जिला पंचायत सतना के अध्यक्ष श्री रामचंद्र कोली ने भी अपने विचार रखे।

स्वचालित जीवामृत उत्पादन संयंत्र, प्लांट क्लीनिक और सामुदायिक जैव संसाधन केंद्र के मॉडल की भी जानकारी दी गई। प्लांट क्लीनिक सागर के बंडा में चल रहा है। किसानों को पौधों में लगने वाले रोगों और रोकथाम के बारे में जानकारी दी जाती है। मंडला के गांव चंदाटोला में जीवामृत जैविक खाद और गोमूत्र से तैयार किए जा रहे हैं कीटनाशक बन रहे हैं। यहां की चंपा दीदी कहती हैं कि एक बार में 2000 लीटर जीवामृत बन जाता है।कोई मेहनत भी नहीं लगती। प्रेमवती बाई बताती हैं कि 10 किलो बेसन, 10 किलो गुड़, 50 लीटर गोमूत्र और 50 किलो गोबर के मिश्रण से कीटनाशक तैयार होता है। आसपास के चार-पांच गांवों में किसानों को बेच देते हैं। अब तक 7200 लीटर बेचने से 45 हज़ार का शुद्ध मुनाफा हुआ। सागर जिले के शासन गांव की मनीषा दीदी बताती है कि वर्मी कंपोस्ट बनाने का काम शुरू किया है। चार टैंक तैयार किए गए हैं और 10 गांव में सप्लाई कर 20 हजार रूपये का फायदा हो चुका है। ग्वालियर के जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी श्री विवेक शर्मा ने पात्रता एप के बारे में जानकारी दी। इसका उपयोग कर योजनाओं का लाभ लेने की पात्रता और जरूरी दस्तावेज की जानकारी मिल जाती है।

क्या है जी आई जेड?

उल्लेखनीय है कि जर्मनी सरकार और भारत सरकार के बीच 2022 में हुए एग्रीमेंट के मुताबिक हरित सतत विकास साझेदारी कार्यक्रम में मध्यप्रदेश में 16 परियोजनाएं चल रही है। पूरे देश में 50 परियोजना चल रही है। यह समझौता 2030 तक चलेगा। दोनों देशों की कैबिनेट स्तरीय बैठक इसी साल अक्टूबर माह में होने वाली है। जर्मनी की सरकार भारत को 90 हजार करोड़ रुपए देने के लिए वचनबद्ध है, जिसमें हर साल भारत को दस हजार करोड़ रुपए मिल रहे हैं। इन परियोजनाओं का संचालन जीआईजेड और बैंकिंग संस्था केएफडब्ल्यू द्वारा हो रहा है। इस समझौते का उद्देश्य पिछले कई दशकों में जर्मनी देश ने सतत विकास के विभिन्न माडल पर कार्य करते हुए जो सीखा है उसे अन्य देशों से साझा करना है।

पेरिस में 2015 में हुए जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के उद्देश्यों और संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा घोषित सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल करने में सहयोग देना इसका दूसरा प्रमुख उद्देश्य है। फिलहाल ऊर्जा, पर्यावरण, शहरी विकास और आर्थिक विकास के मुद्दों पर काम कर रहा है। मध्यप्रदेश में पहले से चल रही है 16 परियोजनाओं में और ज्यादा इजाफा करने के लिए प्रयास किया जायेगा। यह परियोजनाएं जलवायु परिवर्तन, आजीविका मिशन, एग्रीकल्चर इकोलॉजी, जैव विविधता, शहरी विकास और ग्रीन मोबिलिटी जैसे मुद्दों पर काम हो रहा है।

वर्तमान कार्यशाला का उद्देश्य इन क्षेत्रों के लिए नए-नए विचार प्राप्त करना, राजनीतिक संवाद करना, सतत निगरानी रखना, जारी कार्यों का प्रचार-प्रसार करना और उनके लिए जरूरी धनराशि जुटाने की संभावना पर विचार करना है।

 

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