केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कोरोना वायरस के कारण लगाए गए लॉकडाउन के दौरान पुलिस की प्रतिक्रिया को लेकर एक विश्लेषण किया गया है। इसमें पता चला है कि लॉकडाउन के दौरान पुलिस का मानवीय चेहरा लोगों के बीच सामने आया है। हालांकि, इस दौरान प्रवासी मजदूरों पर किए गए अत्याचारों को लेकर इसमें कोई जानकारी नहीं दी गई है, जिन्होंने पैदल चलते हुए अपने मूल निवास तक का सफर तय किया।
पिछले हफ्ते प्रकाशित ‘द इंडियन पुलिस रिस्पांस टू कोविड-19 क्राइसिस’ शीर्षक वाले एक विशेष संकलन में गृह मंत्रालय के थिंक-टैंक ‘ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट’ (बीपीआरडी) ने कहा कि राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में पुलिस बलों और केंद्रीय अर्धसैनिक बलों ने न केवल एक सख्त लॉकडाउन सुनिश्चित किया, बल्कि सावधानीपूर्वक कोविड-19 मरीजों को ट्रैक किया। इसके अलावा इन बलों ने प्रवासी मजदूरों को आवश्यक सेवाओं की आपूर्ति के वितरण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और कोरोना रोगियों को प्लाज्मा भी दान दिया।
इस रिपोर्ट में बीपीआरडी ने कहा, 25 मार्च को जब लॉकडाउन लागू किया गया और इसके चलते अकुशल प्रवासी मजदूरों की आजीविका प्रभावित हुई। लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूरों ने पैदल ही अपने मूल निवासों की तरफ बढ़ना शुरू किया, इससे न केवल उनके लिए खतरा पैदा हुआ बल्कि वे जहां जा रहे थे, वहां के लोग भी संकट में आ गए।
इस दौरान पुलिस ने प्रवासी मजदूरों के साथ संयम बरता और उन्हें खाना, आवास, दवाई, फुटवियर और उनकी वापसी के लिए परिवहन की व्यवस्था की। मजदूरों की थर्मल स्क्रीनिंग की गई और उनकी कोरोना जांच भी हुई। इसमें कहा गया है कि पुलिस अधिकारी ड्यूटी के आह्वान से परे गए और उन्होंने कोरोना रोगियों का अंतिम संस्कार भी किया।
इस रिपोर्ट में कहा गया, कुछ पुलिस अधिकारियों ने गर्भवती महिलाओं को पुलिस वैन में बैठाकर अस्पतालों में भी पहुंचाया। गर्भवती महिलाओं के साथ संवाद करने और उन्हें महामारी के दौरान असुविधा के मामले में सहायता प्रदान करने के लिए व्हाट्सएप ग्रुप्स का गठन किया गया था। कुछ उदाहरणों में, पुलिस कर्मियों ने जन्मदिन के केक भी खरीदे और बच्चों/वरिष्ठ नागरिकों आदि के घर पर जन्मदिन मनाया।