राजनांदगांव : तोप के गोलों से पहाड़ का हिस्सा टूटकर हमारे ऊपर गिरता था, जो ज्यादा दर्दनाक होता था
राजनांदगांव विजय दिवस 16 दिसम्बर को 1971 के युद्ध में पाकिस्तान पर भारत की जीत के कारण मनाया जाता है। इस अवसर पर भारतीय सेना के सिपाही कमलकांत दत्ता से दैनिक भास्कर ने चर्चा की। 23 साल की आयु में वे सेना में भर्ती हुए।
सात साल की सेवा अवधि में दो युद्धों 1965 और 1971 में वे शामिल रहे। उन्होंने कहा कि भारतीय सेना का सिपाही हमेशा देश में शांति, सुरक्षा के लिए तैयार रहता है। इन्हें एक बार आदेश मिले तो बड़े से बड़ा तो कार्य भी आसानी से कर गुजरते हैं। 83 वर्षीय राजपूत रेजीमेंट इनफेंट्री के सिपाही दत्ता बताते हैं कि दो साल की ट्रेनिंग के बाद सीधे 1965 में हमें युद्ध में शामिल किया गया। हम युवा थे एक अलग ही जज्बा था, युद्ध क्षेत्र में पहुंचने हमें आदेश हुआ।
हम सभी को 38 बोगियों की ट्रेन जिसके सभी बोगियों में सैनिक थे युद्ध क्षेत्र पहुंचाया गया। हम जिस स्टेशन पहुंचते वहां के लोग हमें खाने-पीने का सामान सहित स्वागत सत्कार करते थे। जैसे ही युद्ध क्षेत्र में पंहुचे वहां का मंजर देख बौखलाहट हुई। फिर भी हम अपने एरिया में तैनात हो गए। दुश्मन सैनिक रुक-रुककर कभी बम तो कभी गोलियां चलते थे, तो कहीं तोप के गोलों से पहाड़ का हिस्सा टूटकर हमारे ही ऊपर आकर गिरता था जो ज्यादा दर्दनाक होता था। इसके बाद दुश्मन सैनिक को परास्त करते आगे बढ़ते गए। ज्यादा गुस्सा तब आता था जब हमारे साथ सैनिक को कंबल में लपेट कर (वीरगति को प्राप्त होने पर) लाते देखते थे। लेकिन साथी का चेहरा देखे बिना ही अपने पोस्ट में तैनात रहते थे।
चार दोस्त हुए शहीद, फिर भी हम युद्ध क्षेत्र में डटे रहे सिपाही दत्ता बताते हैं कि 1965 व 1971 के युद्धों में उनके चार दोस्त भी वीरगति को प्राप्त हुए। ये सभी दोस्त मुझे ट्रेनिंग के दौरान ही मिले थे। लेकिन दोस्ती ऐसी थी कि जैसे कई जन्मों से साथ हैं। युद्ध के दौरान एक-एक दोस्त के वीरगति को प्राप्त होने की जानकारी होने के बावजूद युद्ध क्षेत्र में डटे रहे। ये बातें कहते हुए उनकी आंखें थोड़ी नम जरूर हुई लेकिन सिपाही हैं फिर आगे बातें करने लगे। दोनों युद्धों के लिए उन्हें चार पदकों से सम्मानित किया गया है।
1971 में मित्र वाहनी के रूप में अपनी सेवाएं दी दूसरे युद्ध 1971 के बारे में बताते हैं कि चूंकि मैं एक युद्ध लड़ चुका था तो दूसरे युद्ध में अहम जिम्मेदारी दी गई। हमें पहले सादे ड्रेस में भेजा गया, वहां शांति व्यवस्था कायम रखने। हम गुप्त रूप से अपने अधिकारी को सूचनाएं देते रहे। एक दिन दुश्मन सैनिकों हो हमारी जानकारी हो गई। हम फिर भी अधिकारी को सूचित किए। उनके आदेश के बाद सैनिक ड्रेस पहनकर सामने आए और युद्ध में शामिल हुए।